भ्रामरी शब्द भ्रमर से बना है जिसका अर्थ होता है “भौंरा”| भ्रामरी संस्कृत शब्द ‘भ्रमर’ से आया है भ्रामरी प्राणायाम करते समय साधक भौरे के समान आवाज करता है ,इसलिए इसे भ्रामरी प्राणायाम कहा जाता है |भ्रामरी प्राणायाम को अंग्रेज़ी में Bee-Breathing Technique के नाम से भी जाना जाता है। भ्रामरी प्राणायाम करना बहुत आसान है और यह किसी भी उम्र में तथा घर या बाहर कहीं भी किया जा सकता है।
भ्रामरी प्राणायाम करने से मानसिक थकान और तनाव दूर होता है। मन की अशांति , चिंता , निराशा , गुस्सा आदि भावनाएँ शांत होती हैं। इसे करने से सिर के सभी अंगों जैसे कान,नाक, मुंह और आँख व मस्तिष्क पर अच्छा प्रभाव पड़ता है।
भ्रामरी प्राणायाम करने की विधि (Steps of Bee Breath In Hindi)
- सबसे पहले खुले , शांत व एकांत जगह को चुने |
- सुखासन, पद्मासन या सिद्धासन किसी एक आसन में बैठ जाए |
- अब दोनों हाथों के अंगूठे से अपने दोनों कानों को बंद करें।
- फिर दोनों हाथों की पहली उंगली को माथे पर रखें और शेष बची हुई उंगली को आंखों पर रखें।
- अब नाक से लंबी गहरी सांस लें फिर मुंह को बंद रखते हुए ओम का उच्चारण करें।
- जब आप ओम का उच्चारण करेंगे तो ऐसा लगेगा जैसे मधुमक्खी गुनगुना रही हो।
- ध्यान रखें कि पूरी लंबी गहरी सांस लें और अंततः सांस को छोड़ें जब तक कि आप पुनः सांस लेने के योग्य नहीं हो जाते हैं।
- मतलब है कि 3 से 5 सेकेंड के अंदर लंबी गहरी सांस लें और सांस को छोड़ते समय 15 से 20 सेकंड का वक्त ले। इस प्राणायाम को लगभग 5 से 10 मिनट तक करें।
- अभ्यास को पूरा करके हाथ नीचे लाएं। फिर हथेली को आपस में रगड़ कर गर्म करें और आंखों को हथेली का स्पर्श देकर धीरे-धीरे खोलें।
भ्रामरी प्राणायाम से होने वाले लाभ(Benefits of Bee Breath In Hindi)
थायरॉइड में लाभ (Benefits of Thyroid)
थायराइड की बीमारी में भी यह प्राणायाम काफी कारगर है। इस प्राणायाम को करते समय गले में वाइब्रेशन पैदा होता है जिससे थायराइड ग्रंथि की सक्रियता बढ़ जाती है और इससे जुड़े हुए रोग गले से संबंधित सभी प्रकार की बीमारियों में लाभ मिलता है।
अनिद्रा व माइग्रेन में लाभ (Benefits in Insomnia and Migraine)
जो लोग अनिद्रा, माइग्रेन, नाक बंद होना, आधे सिर में दर्द होना आदि समस्याओं से जूझ रहे हैं, उन्हें रोज़ाना भ्रामरी प्राणायाम करना चाहिए। इसे आप खाली पेट सूर्योदय और सूर्यास्त दोनों समय कर सकते हैं।
मानसिक तनाव और डिप्रेशन से राहत (Relief From Stress and Depression)
भ्रामरी प्राणायाम अवसाद और मानसिक तनाव में काफी लाभदायक साबित होता है। इसके अभ्यास से आपका शरीर ज्यादा रिलैक्स और हल्का महसूस करता है। आपके मस्तिष्क और मन को शांति मिलती है और आप हर काम में अच्छे से फोकस कर पाते हैं। इतना ही नहीं यह प्राणायाम व्यक्ति में आत्मविश्वास भी बढ़ाता है।
ह्रदय रोग के लिए (For Heart Disease)
भ्रामरी प्राणायाम ह्रदय रोग के लिए फायदेमंद है। यह मन की चंचलता दूर करता है और मन को शांत रखता है। यह उच्च रक्त चाप पर नियंत्रण भी करता है। यह प्राणायाम व्यक्ति को चिंता, क्रोध व उत्तेजना से मुक्त करता है। हाइपरटेंशन के मरीजों के लिए यह प्राणायाम बहुत लाभदायक है।
आवाज़ मधुर(Melodious Voice)
भ्रामरी प्राणायाम लंबे समय तक अभ्यास करते रहने से व्यक्ति की आवाज़ मधुर (Sweat Clear Voice) हो जाती है। इसलिए गायन क्षेत्र के लोगों के लिए यह एक उत्तम प्राणायाम अभ्यास है।
गर्भवती महिलाओं के लिए (For Pregnant Women)
गर्भवती महिलाओं के भ्रामरी प्राणायाम (Bhramari Pranayama) करने से Delivery के वक्त शिशु जन्म सहजता से हो जाता है। और इस प्रणयाम से गर्भवती महिलाओं की अंतःस्त्रावि प्रणाली को अच्छी तरह से काम करने में मदद मिलती है। (फिर भी गर्भवती महिलायें भ्रामरी प्राणायाम डॉक्टर की सलाह के बाद ही करें)।
भ्रामरी प्राणायाम समय सीमा (Bee Breath Time Duration)
नये व्यक्ति को भ्रामरी प्राणायाम तीन से पांच बार करना चाहिए। इस प्राणायाम का अभ्यास बढ़ जाने पर आप इक्कीस बार तक किया जा सकता है।सांस अंदर लेने में करीब 3-5 सेकंड और भ्रमर ध्वनी के साथ बाहर छोड़ने में करीब 15-20 सेकंड का समय लगता है| करीब तीन मिनट में 5-7 बार भ्रामरी प्राणायाम किया जा सकता है|
भ्रामरी प्राणायाम करते समय सावधानी (Precaution of Bee Breath In Hindi)
- भ्रामरी प्राणायाम के पूर्व भस्त्रिका, कपालभाति, उज्जायी, अनुलोम विलोम प्राणायाम कर लेना ज्यादा लाभप्रद है।
- कान में दर्द होने पर यह प्राणायाम नहीं करना चाहिए।
- प्राणायाम करने का समय और चक्र धीरे-धीरे बढ़ाये।
- भ्रामरी प्राणायाम करते वक्त दोनों कानअंगूठों से बंद करें , दबाव ना डालें। कान ढकने होते हैं, अपनी उँगलियों को कान के अंदर नहीं डालना है।
- हमेशा ध्यान रखें की आवाज को निकालते समय या श्वास को छोड़ते समय आपका मुंह बंद होना चाहिए और नाक से ही आवाज निकलनी चाहिए ।गुंजन करते हुए स्वास को छोड़ना चाहिए।
- भ्रामरी प्राणायाम हमेशा सुबह के वक्त और खाली पेट करना चाहिए। दिन के अन्य समय पर इसका अभ्यास किया जा सकता है, पर सुबह में भ्रामरी प्राणायाम करने से दुगना फल प्राप्त होता है। भ्रामरी प्राणायाम शाम के वक्त कर रहे हैं तो प्राणायाम करने और शाम का भोजन लेने के समय के बीच कम से कम दो से तीन घंटे का अंतर ज़रूर रखे।
नोट– एक प्रशिक्षित योग प्रशिक्षक की देखरेख में भ्रामरी प्राणायाम का अभ्यास किया जाना चाहिए। संभव हो तो सांस लेने से जुड़े सभी प्रकार के प्राणायाम किसी योगा एक्सपेर्ट की निगरानी में करें, या उनसे सही सही सीख कर ही करें।
पढ़ने के लिए धन्यवाद!
रीना जैन
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