प्राणायाम हमेशा खाली पेट करना चाहिए। सूर्योदय होने से पहले जो लोग प्राणायाम करते हैं, उन्हें अधिक लाभ होता है। इस समय वातावरण साफ, शांत और स्वच्छ होता है। एकांत में आप शांत मन से अपनी सांसों की तरफ ध्यान लगा पाते हैं। यदि आप सुबह प्राणायाम नहीं कर सकते, तो शाम के समय प्राणायाम करें। शाम को भी शांत और एकांत जगह पर ही इसका अभ्यास करना अधिक फायदेमंद होगा। नियमित प्राणायाम करने से इम्यून सिस्टम को बेहतर बनाया जा सकता है। इम्यूनिटी ही हमें संक्रमण, वायरल से बचाने में मदद करती है।
कपालभाति प्राणायाम
इस प्राणायाम में कमर सीधी रखते हुए दोनों हाथों को घुटनों पर ज्ञान मुद्रा में रखें। इस प्राणायाम को हमेशा शुद्ध वातावरण में पद्मासन या सुखासन में बैठ कर ही करना चाहिए। कपालभाति प्राणायाम करने के लिए सांस सामान्य गति से शरीर के अंदर की और लेनी होती है और तेज गति से बाहर निकालनी होती है।
प्रत्येक सेकंड में एक बार पूरी सांस को तेजी के साथ नाक से बाहर छोड़ें, इससे पेट अन्दर चला जाएगा। प्रत्येक सेकंड में एक बार साँस को तेजी से बाहर छोड़ने के लिए ही प्रयास करना होता है।इस बात का ध्यान रखें कि श्वास लेने की आवाज न आए, बल्कि श्वास छोड़ने की आवाज तीव्र गति से आए। जैसे छींकने की आवाज आती है, उसी तरह इस प्राणायाम में भी तेज आवाज आती है।
संक्रामक बीमारियों से कपालभाति प्राणायाम रक्षा करता है।कपालभाति करने वाले व्यक्ति को आम बीमारियाँ छू नहीं पाती हैं। इससे मानसिक तनाव और दमे की बीमारी दूर हो जाती हैं। साथ ही कपालभाति करने से मन में सकारात्मक विचार आते हैं और निर्णयशक्ति बढ़ती है।इसे रोजाना कम से कम 5-10 मिनट करना चाहिए।
भस्त्रिका प्राणायाम
यह प्राणायाम पद्मासन या सुखासन में बैठ कर किया जाता है। इसका अभ्यास करते समय शरीर को स्थिर अवस्था में रखना चाहिए। सिर, गला, पीठ तथा मेरुदंड सीधे और मुँह बंद होना चाहिए।इस प्राणायाम में श्वास को तीव्र गति से अंदर और बाहर करना होता है। श्वास अंदर लेते हुए पेट बाहर तथा श्वास छोड़ते समय पेट अंदर रखें। इस प्राणायाम से फेफड़ों की शुद्धि होती है और तथा उसे काफी शक्ति भी प्राप्त होती है। रोजाना लगभग दस से पंद्रह मिनट तक इसका अभ्यास करें।
प्रदूषित वातावरण में शरीर की अशुद्धि दूर करने के लिए यह बहुत फायदेमंद प्राणायाम है। इसीलिए किसी भी प्रकार के संक्रमण और बीमारी से यह योग काफी हद तक बचाव कर सकता है। वात, पित्त और कफ की समस्याओं को दूर करने के लिए भस्त्रिका प्राणायाम कारगर इलाज है। शरीर के फेफड़े दूषित हवा, धूल मिट्टी और अन्य अशुद्धियों से ग्रस्त होने पर भस्त्रिका प्राणायाम का अभ्यास करना बहुत लाभकारी होता है।भस्त्रिका करने से इम्यूनिटी मजबूत होती है। इस प्राणायाम को करने से पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन मिलती है और ज्यादा मात्रा में कार्बन डाईऑक्साइड बाहर निकल जाती है।
भ्रामरी प्राणायाम
वास्तव में भ्रमर का अर्थ ही मधुमक्खी होता है। चूँकि इस प्राणायाम को करते वक्त व्यक्ति बिल्कुल मधुमक्खी की तरह ही गुंजन करता है इसलिए इसे भ्रामरी प्राणायाम कहते है। इस प्राणायाम को करने के लिए पहले सुखासन या पद्मासन की अवस्था में बैठ जाएं। अब अंदर गहरी सांस भरते हैं। सांस भरकर पहले अपनी अंगूलियों को ललाट में रखते हैं। जिसमें 3 अंगुलियों से आंखों को बंद करते हैं। अंगूठे से कान को बंद करते हैं। मुंह को बंदकर ‘ऊं‘ का नाद करते हैं। इस प्राणायाम को 3 से11 बार किया जा सकता है। यह प्राणायाम काफी सरल है और इसे दिन में किसी भी वक्त कहीं भी किया जा सकता है।
भ्रामरी प्राणायाम के नित्य अभ्यास से सोच सकारात्मक बनती है और व्यक्ति की स्मरण शक्ति का विकास होता है। भय ,अनिंद्रा, चिंता, गुस्सा और दूसरे अभी प्रकार के मानसिक विकारों को दूर करने के लिए भ्रामरी प्राणायाम अति लाभकारक होता है।
अनुलोम-विलोम प्राणायाम
इस प्राणायाम को करने के लिए पद्मासन की मुद्रा में बैठना होगा, जो लोग पद्मासन की मुद्रा में नहीं बैठ सकते, वो सुखासन मुद्रा में बैठ सकते हैं। सबसे पहले कमर सीधी रखें और अपनी दोनों आँखें बंद कर लें। एक लंबी गहरी साँस लें और धीरे से छोड़ दें।इसके पश्चात अपने दाहिने हाथ के अंगूठे से अपनी दाहिनी नासिका को बंद करें और बाई नासिका से धीरे-धीरे गहरी साँस लें। साँस लेने में जोर न लगाएं, जितना संभव हो सके उतनी गहरी साँस लें। अब दाहिने हाथ की मध्य उंगली से बाई नासिका को बंद करें और दाई नासिका से अंगूठे को हटाते हुए धीरे-धीरे साँस छोड़ें।
कुछ सेकंड के बाद फिर दाई नासिका से गहरी साँस लें। इसके बाद दाहिने अंगूठे से दाहिनी नासिका को बंद करें और बाई नासिका से दाहिनी हाथ की मध्य उंगली को हटाकर धीरे-धीरे साँस छोड़ें। इस तरह अनुलोम – विलोम प्राणायाम का एक चक्र पूरा हो जाएगा। आप एक बार में ऐसे पाँच से सात बार कर सकते हैं। इस प्रक्रिया को आप रोज लगभग दस से पंद्रह मिनट तक कर सकते हैं।
अनुलोम – विलोम प्राणायाम को करने से एलर्जी और त्वचा से संबंधित समस्याएं खत्म हो जाती हैं और शरीर में रक्त संचार सुधरता है। ब्लड प्रेशर की समस्या को दूर करने में भी यह सहायक है। शरीर का तापमान सामान्य रहता है। इसके अभ्यास से फेफड़े को मजबूती मिलती है। साथ ही भरपूर मात्रा में शुद्ध ऑक्सीजन का प्रवेश भी इसी योग के माध्यम से होता है। इसके करने से इम्यूनिटी मजबूत होती है।
उज्जाई प्राणायाम
इस प्राणायाम को करने के लिए नाक से गहरी व लंबी श्वास भीतर लेते हुए अपनी ग्रीवा की अंतरंग मांसपेशियों को सख्त रखें। श्वास लेते व छोड़ते समय कंपन महसूस करें। ध्यान रहे कि श्वास-प्रश्वास की क्रिया नाक से ही पूरी करनी है।
इसे करने से मन शांत रहता है, अस्थमा, टीबी, माइग्रेन, अनिद्रा आदि समस्याओं से छुटकारा दिलाला है। खानपान पर ध्यान देने के साथ 15 से 20 दिनों तक लगातार इन क्रियाओं का अभ्यास करने से आपके शरीर की प्रतिरोधक क्षमता काफी मजबूत हो जाएगी।
उद्गीथ
उद्गीथ प्राणायाम का सीधा संबंध ॐ से होता है। अथार्त उद्गीथ प्राणायाम करते समय ॐ का जाप करना पड़ता है इस प्राणायाम को करने से शारीरिक व आध्यत्मिक लाभ प्राप्त होते हैं। इसमें ओम का जाप करते हुए धीरे.धीरे श्वास लेना और सांस छोड़ना शामिल है। ओम का जाप करते हुए ओ उनसे 3 गुना लंबा होना चाहिए। यह प्रतिदिन 5 से 11 बार अभ्यास किया जा सकता है।
यह एक अति सरल प्राणायाम और एक प्रकार का मैडिटेशन अभ्यास है।अनिद्राए तनाव,अवसाद, चिंता और सभी प्रकार की मानसिक बीमारियों को स्थायी रूप से दूर किया जा सकता है। हृदय रोग, उच्च रक्तचाप, माइग्रेन, एकाग्रता आदि में भी लाभकारी है। चेहरे की चमक और आंखों में फायदेमंद है। गले से संबंधित सभी प्रकार के रोग दूर होते है।
पढ़ने के लिए धन्यवाद !
इस ब्लॉग की जानकारी ज्ञान के उद्देश्य से है और इसमें कोई चिकित्सकीय सिफारिश शामिल नहीं है। सलाह का पालन करने से पहले एक प्रमाणित चिकित्सक से परामर्श करें।
रीना जैन
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